
Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas: ‘धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है.’
Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas: गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति और निर्भीक स्वभाव के थे.
- News18Hindi
- Last Updated:
November 24, 2020, 11:33 AM IST
झुके नहीं, बलिदान किया स्वीकार
गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने झुके नहींं. इसका नतीजा यह हुआ कि उनका सिर कलम करवा दिया गया. औरंगजेब ने उन्हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में साफ मना कर दिया. गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें ‘हिंद दी चादर’ के नाम से भी जाना जाता है. बता दें कि दिल्ली का ‘शीशंगज गुरुद्वारा’ वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था.
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गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई जब वह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था. कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की मदद ली. इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी इफाजत का जिम्मा अपने सिर से ले लिया. उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया. वहीं गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े. इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया.
औरंगजेब के आगे नहीं झुके गुरु तेग बहादुर
औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया. जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था. वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले. भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को
भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया. बता दें कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था.
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धर्म को माना सर्वोपरि
बता दें कि 18 अप्रैल 1621 में जन्में तेग बहादुर करतारपुर की जंग में मुगल सेना के खिलाफ लोहा लेने के बाद उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा. वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि ‘धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है.’ (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)