पटना44 मिनट पहले
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DSP मो. अलाउद्दीन। (फाइल फोटो)
करीब 20 साल पहले बेतिया का कुख्यात अपराध राजू और अरमान एक व्यापारी से रंगदारी वसूल करने पटना आए थे। पुलिस को इस बात की भनक लग गई। पुलिस ने घेराबंदी की। अपने को घिरता देख अपराधियों ने पुलिस पर फायरिंग करने लगे। काउंटर फायरिंग करते हुए तत्कालीन दारोगा मोहम्मद अलाउद्दीन ने भी फायरिंग शुरू कर दी। इस बीच अलाउद्दीन को 5 गोलियां लगी और वह वहीं गिर पड़े। इसके बावजूद अलउद्दीन ने दोनों अपराधियों को मार गिराया।
यह कहानी कोई फिल्मी नहीं बल्कि पटना में CID विभाग में पदस्थापित उस DSP की है जो अपराधियों से मुठभेड़ में अपनी दोनों पैर गंवा बैठे। आज डीएसपी मोहम्मद अलाउद्दीन दोनों पैरे पर खड़े नहीं हो पा रहे हैं। दिव्यांग हो जाने के बावजूद वे रोज ड्यूटी पर आ रहे हैं। पूरे पुलिस महकमे में उनके इस जज्बे को सलाम किया जा रहा है। वरीय अधिकारी पुलिसकर्मियों को अलाउद्दीन की मिशाल देते हैं।
कई बार हो चुके हैं सम्मानित
वर्ष 2001 में बिहार सरकार से उन्हें उत्कृष्ट पुलिस सम्मान से भी सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं अपनी बहादुरी के लिए इन्होंने सोनपुर मेले में भी कई सम्मान प्राप्त किए हैं। इस आधार पर सरकार उन्हें गैलेंट्री अवार्ड देते हुए इंस्पेक्टर और फिर डीएसपी बना दिया।
1994 में दारोगा बने थे
बातचीत के क्रम में डीएसपी ने बताया कि एक समय ऐसा भी था जब इनका हौसला पूरी तरह टूट चुका था। अपने दोनों पैर गवा बैठे डीएसपी अपनी जीने की इच्छा खो चुके थे। इसके बाद इन्होंने अपनी पूरी ताकत अपनी जिंदगी जीने की लगा दी और आज यह लोगों के बीच पुलिस विभाग में भी एक मिसाल के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि सीआईडी विभाग में काम करते हुए इन्होंने पुलिस विभाग के लोगों के दुख दर्द को समझा और अब वे इसके लिए लगातार जो पुलिस पदाधिकारी रिटायरमेंट के कगार पर पहुंच चुके हैं उनका वेतन पेंशन सहित कई मामलों के निष्पादन में अपना पूरा सहयोग उन्हें देते हैं। पुलिस विभाग में काम करने वाले लोगों को चाहिए कि वे लोगों के विश्वास पर खरा उतरे। तब ही आम लोगों का विश्वास पुलिस के ऊपर बढ़ेगा और लोग पुलिस को एक सम्मान नजरिया से देखेंगे।
रिपोर्ट: ज्ञान शंकर