पटना26 मिनट पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
राहुल गांध के कन्हैया कुमार।
कांग्रेस के अंदर राहुल गांधी की बड़ी पसंद कन्हैया कुमार हैं। क्या इस नाते कन्हैया बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हो सकते हैं? इसकी चर्चा खूब है कि कन्हैया कुमार को यह पद राहुल गांधी दे सकते हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाडरा आदि कांग्रेस के शीर्षस्थ नेताओं ने हाल के दिनों में बिहार कांग्रेस के खास नेताओं के साथ बातचीत की है। प्रशांत किशोर के साथ भी मीटिंग हुई है। भास्कर यहां बता रहा है कि कन्हैया के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावनाएं और अड़ंगे क्या-क्या हैं?
सड़क खाली है संघर्ष करने वाला नेता चाहिए
बिहार कांग्रेस को सामाजिक समीकरणों के साथ जनता के सवाल पर संघर्ष करने वाला नेता चाहिए। सड़क खाली है। महंगाई के सवाल का जवाब चीन से दिया जा रहा है! बिहार की राजनीति में किसी नेता पर बात करें और उसकी जाति पर बात नहीं करें तो यह गलत होगा। इसलिए सबसे पहले आपको बताते हैं कि कन्हैया कुमार की जाति भूमिहार है। वही भूमिहार जाति जिसको लेकर कहा जा रहा है कि बोचाहा की जीत में इस जाति के वोटर्स की बड़ी भूमिका रही।
कांग्रेस क्यों बना सकती है कन्हैया कुमार को प्रदेश अध्यक्ष
1. सवर्ण वोट बैंक- कन्हैया की जाति भूमिहार है और यह जाति अब भाजपा को छोड़कर राजद की ओर जाती दिख रही है। कांग्रेस चाहती है कि कन्हैया कुमार के सहारे वह सवर्ण वोट बैंक पर अपना कब्जा करे। बाकी सवर्णों के वोट बैंक को भी भाजपा से छीने। बेगूसराय के लोक सभा चुनाव में कन्हैया कुमार को राजद का समर्थन रहता तो इसका दूसरा मैसेज जाता, लेकिन वहां गिरिराज सिंह को मजबूत कर दिया गया था।
2. मुसलमान वोट बैंक- कन्हैया कुमार का बैकग्राउंड सीपीआई का रहा है। वे जेएनयू के आंदोलन की उपज हैं। वे बेगूसराय में भाजपा के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह के खिलाफ चुनाव भी लड़े थे। इसलिए कांग्रेस की नजर कन्हैया के बहाने राजद से जुड़े मुसलमान वोट बैंक को भी अपनी तरफ करने की है। बिहार में मुसलमानों का वोट बैंक 16 फीसदी है। राजद में मुसलमान वोट बैंक खिसका है। जिस राजद में वर्ष 2015 में 11 मुसलमान विधायक थे, इस बार 2020 में 8 जीते। कांग्रेस ने 10 मुसलमान को टिकट दिया उसमें से 6 जीते। जदयू ने 11 को दिया और एक भी नहीं जीते। एआईएमआईएम से 5 मुसलमान विधायक जीते।
3. धर्मनिरपेक्ष छवि- कांग्रेस बिहार में तेजस्वी यादव या लालू यादव के पैरलर एक वोकल धर्मनिरपेक्ष छवि वाले नेता को सामने लाकर राजद की धर्मनिरपेक्ष छवि के पैरलर राजनीति करना चाहती है। इस लिहाज से कन्हैया कुमार फिट नेता हैं। लालू प्रसाद की धारा भाजपा विरोध की मजबूत धारा रही है लेकिन तेजस्वी यादव उस धारा को कितनी मजबूती देंगे इसकी परीक्षा अभी ठीक से होनी है।
4. लाठी खाकर नेता बने- कन्हैया कुमार तार्किक भाषण देते हैं। बिना किसी पारिवारिक बैकग्राउंड वाले नेता हैं कन्हैया। वे भाजपा के खिलाफ लाठी खाकर नेता बने हैं, जेल गए हैं। यातना सहा है। उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में राजनीति नहीं मिली है। बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए जुझारू नेता की तलाश है। कन्हैया का ताकतवर पक्ष यह है कि वे राहुल गांधी की पसंद बताए जा रहे हैं।
कन्हैया कुमार को अध्यक्ष बनने में क्यों हो सकती है मुश्किलें
- उनकी जाति – कन्हैया कुमार की ताकत उनका भूमिहार होना हो सकता है तो यह जाति उनकी कमजोरी भी हो सकती है। बिहार कांग्रेस में पहले से ही अगली पंक्ति में कई भूमिहार नेता हैं। विधायक दल के नेता अजीत शर्मा, कांग्रेस कंपेनिंग कमिटी के चेयरमैन अखिलेश सिंह सहित कार्यकारी अध्यक्ष श्याम सुंदर सिंह धीरज इसी जाति से आते हैं। कांग्रेस ने विधान सभा चुनाव 2020 में 70 में 12 भूमिहारों को टिकट दिया था, और जीते दो थे- अजीत शर्मा और नीतू सिंह।
- सोशल इंजीनियरिंग- कांग्रेस के संगठन में शीर्ष के सात पदों में से पांच सवर्णों के जिम्मे है। मदन मोहन झा ने इस्ताफा दिया है पर वे अगला अध्यक्ष बनने तक पद पर रहेंगे। अनिल शर्मा, डॉ. शकील अहमद खान जैसे वरिष्ठ नेता संगठन में बिहारी समाज के अनुसार सोशल इंजीनियरिंग को लागू करने की मांग उठा चुके हैं। दूसरी पार्टियां जैसे भाजपा, राजद, जदयू आदि यादव, कुशवाहा, साह- साहु आदि जातियों को तरजीह दे रही हैं पर कांग्रेस जब 70 सीट पर विधान सभा चुनाव लड़ती है तो उसमें 15 रिजर्व को छोड़ शेष 55 सीटों में से 33 सीट पर सवर्ण को उतारती है।
- कितने एक्टिव- कन्हैया कुमार को कांग्रेस ने सीपीआई से लाया। वे कांग्रेस में आने के बाद उपचुनाव में प्रचार करने भी गए पर बतौर स्टार प्रचारक कांग्रेस को उससे कितना फायदा हुआ, ये सवाल पार्टी के सामने है। प्राथमिक सदस्य बनने के बाद बिहार में कितने कार्यक्रम किए यह भी सामने है। पार्टी के अंदर सवाल है कि क्या कन्हैया कुमार सिर्फ राज्यसभा जाने की इच्छा से कांग्रेस में आए! अगर ऐसा नहीं है तो एनडीए को घेरने के लिए कोई कंपेन उन्होंने क्यों नहीं चलाया।
- कांग्रेस की परिपाटी- वर्ष 2013 में अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने। बताया जाता है कि उसी समय और उसके बाद 2017 में अखिलेश सिंह प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे पर उन्हें कांग्रेस ने इसलिए अध्यक्ष का पद नहीं दिया कि वे दूसरे दल से आए हैं। कांग्रेस अपने पुराने बैकग्राउंड वाले नेता को ही अध्यक्ष पद देती है। कन्हैया तो महज एक साल पहले ही कांग्रेस में आए हैं। कांग्रेस अपनी परिपाटी बदल दे तभी कन्हैया को अध्यक्ष बनाया जा सकता है।