कास्ट: अभिषेक बच्चन, चित्रांगदा सिंह, परन बंदोपाध्याय, पूरब कोहली, भानु उदय, रोनित अरोरा, समारा तिजोरी
निर्देशक: दिया अन्नपूर्णा घोष
स्टार रेटिंग: 3
कहां देख सकते हैं: जी5
नई दिल्ली: आपको याद होगा अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) अक्सर डबल रोल करते थे, सत्ते पे सत्ता, डॉन, तूफान, शंहशाह, छोटे मियां बड़े मियां, सूर्यवंशम जैसी कई मूवीज हैं, महान में तो तीन रोल कर डाले थे. कुछ मूवीज में वो रोल एक ही करते थे, लेकिन जवानी और बुढ़ापे के या दो बदले हुए किरदारों को जीते थे. इससे कलाकार को अपनी प्रतिभा ज्यादा दिखाने का मौका मिलता है, आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) कई मूवीज से इसी पर फोकस कर रहे हैं और इसके लिए उन्हें ओटीटी मूवीज करने से भी गुरेज नहीं.
अभिषेक की मेहनत
‘बॉब बिस्वास’ (Bob Biswas) भी उसी सीरीज की एक मूवी है. शायद शुरूआत ‘गुरू’ से हुई थी, अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) की सबसे कामयाब मूवी, जवानी और बुढापे के उनके दोनों किरदारों में एक्टिंग की काफी गुंजाइश थी और मणि रत्नम ने उनसे उनका बेहतरीन निकलवाया. हैप्पी न्यू ईयर, बोल बच्चन, द्रोण, बंटी और बबली जैसी कई फिल्मों में उन्हें इस तरह दोहरे किरदारों में रहने को मिला भी. अव वह फिर से उसी रास्ते पर हैं. वेबसीरीज ‘ब्रीद: इनटू द शेडोज’ में भी जिस तरह एक ही शरीर में डॉ. अविनाश सब्बरवाल और जे दोनों को जीते हैं, वाकई में काबिले तारीफ था. फिर आई हॉट स्टार पर रिलीज हुई ‘बिग बुल’, गुरू की तरह इसमें भी वो जवानी से अधेड़ावस्था के किरदारों मे दिखते हैं, इससे उनके किरदार में गहराई आती है, उनको काफी कुछ करने का मौका मिलता है. इसी तरह की मूवी है ‘बॉब बिश्वास’, जिसमें अभिषेक बच्चन के पास काफी कुछ करने को था और उन्होंने अपनी तरफ से पूरी मेहनत की भी है.
क्या है कहानी
बॉब बिश्वास (Bob Biswas) की कहानी विद्या बालान की मूवी ‘कहानी’ से जुड़ती है, जिसमें सुपारी किलर बॉब बिश्वास का रोल बंगाली एक्टर सास्वत चटर्जी ने किया था, जिसने भी मूवी देखी बॉब बिश्वास के रोल की चर्चा जरुर की. तभी तो डायरेक्टर सुजॉय घोष को लगा कि इस किरादर को आगे बढ़ाया जाए और उसी के नाम से मूवी रजिस्टर्ड हो गई. साथ दिया शाहरुख खान और गौरी खान ने और उनके रेड चिलीज एंटरटेनमेंट ने सुजॉय घोष के बाउंड स्क्रिप्ट प्रोडक्शंस ने मिलकर ये मूवी बनाई. ना केवल बॉब बिश्वास का हीरो बदल दिया, बल्कि नई मूवी का डायरेक्शन भी एक नए चेहरे को दिया गया, दिया अन्नपूर्णा घोष. हालांकि कहानी सुजॉय घोष की है और डायलॉग भी उन्होंने ही लिखे हैं.
बॉब द साइलेंट किलर
कहानी मूवी में बॉब विश्वास के किरदार को ट्रक के नीचे आया दिखाया गया था, बॉब विश्वास के रूप में अभिषेक बच्चन की कहानी हॉस्पिटल से ही शुरू होती है, जो एक्सीडेंट के बाद 8 साल कोमा में रहकर अपनी याददाश्त गंवा चुके हैं. उनकी पत्नी मेरी के रोल में हैं चित्रांगदा सिंह, एक बेटा और एक सौतेली किशोर बेटी. पैसे की जरुरत, परिवार से बेइंतहा प्यार और पुराने गैंग की कोशिशें रंग लाती हैं और फिर एक बार बॉब बिश्वास बन जाता है साइलेंट किलर, एक के बाद एक कोलकाता में फिर से गिरने लगती हैं लाशें. हां दिखाने के लिए बॉब अपने पुराने जॉब में ही है, एलआईसी एजेंट का जॉब.
हो सकती है निराशा
कहानी के मुकाबले नया रखने के लिए इस मूवी में एक नया प्लॉट भी रचा गया है, ड्रग्स की टेबलेट ‘ब्लू’ का बिजनेस. जिसकी लत बॉब बिश्वास की बेटी को भी लग जाती है. गिरती लाशों के बीच बॉब की याददाश्त भी कभी कभी वापस आने लगती है, फिर उसके हाथ लगती है एक डायरी, जिससे उस गैंग के साथ साथ कुछ सफेदपोशों के भी चेहरे बेनकाब हो सकते हैं. परन बंधोपाध्याय बंगाली का बड़ा नाम है, इस मूवी में उनका काली बाबू का किरदार काफी दमदार है. शायद हर एक किरदार को गढ़ने में की गई मेहनत साफ दिखती है. ऐसे में उन लोगों को बेहद निराशा हाथ लग सकती है, जो पिछले बॉब बिश्वास को अभिषेक बच्चन के किरदार से जोड़कर देखते हैं, वो बंगाल को छोड़कर पूरे हिंदुस्तान के लिए नया किरदार था, उसको लोग जानते नहीं थे, इसलिए वो किरदार इतना असरदार था, जबकि इस बॉब को जब आप देखते हैं तो कितनी भी कोशिश कर लीजिए अभिषेक बच्चन झलक ही जाते हैं, भले ही बाला की तरह उनके सर के बाल बीच में से गायब ही क्यों ना दिखाए हों.
रहस्यमयी किरदार
दर्शकों के सामने मेमोरी खोने के बाद सामने आए अभिषेक बच्चन के मासूम किरदारों के बीच से जब जब खौफनाक बॉब बिश्वास का चेहरा सामने आने लगता है, हैरान कर देता है, डायरेक्टर की पूरी कोशिश रही है कि बॉब बिश्वास के असली चेहरे को इतने धीरे धीरे सामने लाना कि दर्शक ना चाहते हुए भी बंधने के लिए मजबूर है. मूवी का हर किरदार रहस्मयी लगता है और डायरी, ब्लू गैंग. पुराने मर्डर, बॉब का संदूक जैसी चीजें जैसे जैसे खुलती जाती हैं, मूवी आपको बंधे रहने पर मजबूर कर देती है.
अभिषेक की बेहतरीन एक्टिंग
हालांकि फिल्म में कॉमेडी या रोमांस के लिए खास जगह नहीं है, एक किस्म की डार्क मूवी इसे कह सकते हैं आप और अभिषेक बच्चन के लिए इसमें काफी सम्भावनाएं हैं और काफी हद तक उन्होंने इसके साथ न्याय भी किया है. हालांकि डायरेक्टर और चित्रागंदा दोनों इस बात में चूक गए कि जैसा रवैया एक पत्नी का कोमा से बाहर आए पति के लिए शुरूआत में होना चाहिए था, वैसा नहीं दिखा. हालांकि मूवी में म्यूजिक के लिए कोई खास जगह नहीं थी, ऐसे में बैकग्राउंड म्यूजिक, एडीटिंग और कैमरा वर्क तारीफ का हकदार है. ऐसे में इस मूवी के लिए एकदम से ये नहीं कहा जा सकता कि इसे खारिज कर दिया जाए, जो कहानी या पिछले बॉब से जोड़कर देखेंगे उनको जरुर निराशा लगेगी, लेकिन एक अच्छी थ्रिल फिल्म के शीकौनों के लिए ये अच्छी टाइम पास मूवी है. अभिषेक बच्चन के फैन्स भी निराश नहीं होंगे.
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